स्ट्राइकर लड़ाकू वाहन को बनाने में भारत ने दिखाई दिलचस्पी? अमेरिका ने दिया बड़ा संकेत

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वॉशिंगटन। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के बीच तनाव अभी भी बरकरार है। चीन की हरकतों और नापाक मंसूबों को ध्यान में रखते हुए भारत भी लगातार अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। सेना पूर्वी लद्दाख जैसे ऊंचाई वाले इलाकों में सैनिकों को मोबाइल (स्वचालित) बख्तरबंद सुरक्षा वाहन उपलब्ध कराने की दिशा में काम कर रही है। अब अमेरिका ने संकेत दिया है कि आठ पहियों वाले बख्तरबंद पैदल सेना के लड़ाकू वाहन (आईसीवी) स्ट्राइकर की नई पीढ़ी को साथ मिलकर बनाने के संबंध में बात आगे बढ़ गई है। अमेरिकी उप विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल ने बुधवार को संकेत दिया कि स्ट्राइकर की नवीनतम पीढ़ी को मिलजुलकर बनाने के संबंध में अमेरिका और भारत के बीच बातचीत नई दिल्ली में हुई बैठकों के बाद आगे बढ़ गई है। हाल ही में व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन नई दिल्ली की यात्रा पर आए थे। इस दौरान भारत और अमेरिका ने उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने पर सहमति जताई। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात की थी। महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी (आईसीईटी) पर अमेरिका-भारत पहल की प्रमुख बैठकों में सुलिवन के साथ कैंपबेल भी मौजूद रहे थे। कैंपबेल ने आईसीईटी समीक्षा के लिए नई दिल्ली का दौरा करने के एक सप्ताह बाद एक ऑनलाइन ब्रीफिंग की। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत ने बैठकों के दौरान स्ट्राइकर लड़ाकू वाहन के सह-उत्पादन में रुचि दिखाई है। अमेरिकी सेना भारतीय सेना के सामने स्ट्राइकर की क्षमताओं का प्रदर्शन करेगी। कैंपबेल ने भारत को एमक्यू-9बी ड्रोन की स्थिति पर भी सवालों का जवाब देते हुए कहा कि ड्रोन के लिए प्रस्ताव और स्वीकृति का पत्र मार्च की शुरुआत में भारत को दिया गया था। उन्होंने कहा, 'फिलहाल हम आगे बढ़ने के लिए हस्ताक्षर का इंतजार कर रहे हैं। जनरल एटॉमिक्स इस बिक्री के ब्योरे के लिए भारतीय रक्षा मंत्रालय के साथ बातचीत कर रहा है।'

रूस पर खत्म होगी निर्भरता

भारत ने देश की सैन्य क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहनों का सह-उत्पादन करने की योजना बनाई है। इस सौदे के पूरा होने के बाद स्ट्राइकर का विदेश में पहला उत्पादन शुरू हो जाएगा। इस समझौते से न केवल भारत के लिए आर्थिक रूप से एक वरदान हो सकता है, बल्कि यह देश को रूसी हथियारों पर निर्भरता कम करने में भी मदद कर सकता है। रूस रक्षा हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, जो भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा है। जब उनसे पूछा गया कि अमेरिका भारत के साथ संवेदनशील प्रौद्योगिकी साझा करने के बारे में कितना चिंतित है, जिस तक रूस की पहुंच हो सकती है, तो कैंपबेल ने जवाब दिया, 'हमने स्पष्ट किया है कि भारत और रूस के बीच जारी संबंधों से कौन से क्षेत्र (सैन्य और तकनीकी रूप से) प्रभावित हो सकते हैं। मुझे लगता है कि हम उन कुछ जुड़ावों को कम करने के लिए जो भी कदम उठा सकते हैं, उठाएंगे और हमने कुछ चिंताएं व्यक्त की हैं।'

 

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